श्री गणेश पूजन और पद्मशाली समाज

पद्मशाली समाज में श्री गणेश की पूजा बहुत विधिविधान व उत्‍साहपूर्वक की जाती है । हम पद्मशालियों पर भगवान शिव की असीम अनुकंपा प्रारंभ से ही रही है और श्री गणेश भगवान शिव के पुत्र है, इसलिये श्री गणेश की पूजा विशेष आग्रह के साथ पद्मशाली समाज में की जाती है । किन्‍तु यही सम्‍पूर्ण सत्‍य नहीं है । पद्मशालियों के गणेशपूजन के पीछे एक और रोचक कथा भी काफी पहले से चली आ रही है । इसी कथा से आज इस वेबसाईट की शुरूआत कर रहे हैं। यह कथा हम पद्मशालियों के लिये अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण और उपयोगी है । पद्मशालियों का पौराणिक इतिहास पढ़ने पर ज्ञात होता है की पूर्व में पद्मशाली समाज एक अत्‍यंत प्राचीन व समृध्‍दशाली समाज हुआ करता था । फिर कालांतर में हमारे समाज की दुर्दशा और ये पतन क्‍यों हो गया ? यह कथा इसी विरोधाभास के कारण को स्‍पष्‍ट करने वाली कथा है । यह हमारे पद्मशाली समाज के शापित और शापमुक्‍त होने की अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण कथा है । प्रत्‍येक पद्मशाली को इस कथा का ज्ञान आवश्‍यक है । प्राचीनकाल में पद्मशाली समाज में '' प़द्माक्ष '' नाम के महापुरूष हुये थे, जो परम शिवभक्‍त थे । उनकी शिव भक्ति से प्रसन्‍न होकर जगतपिता ब्रम्‍हाने उन्‍हें एक अति मूल्‍यवान, अदभूत रत्‍न प्रदान किया और एक विशेष हिदायत दी - ' इस रत्‍न का तेज अदभूत है, इसे किसी भी व्‍यक्ति को दिखाना नहीं । इस रत्‍न के प्रभाव से तुम्‍हारे वंश की उन्‍नति होगी ।' ब्रम्‍हाजी की आज्ञा मानकर पद्माक्ष्‍ा ने वह अदभूत रत्‍न सदैव छिपाकर रखा । पद्माक्ष के पास अदभूत रत्‍न है इस बात का ज्ञान श्री गणेश को हुआ । उन्‍होंने पद्माक्ष से उस रत्‍न को देखने की इच्‍छा प्रकट की । किन्‍तु पद्माक्ष ने यह कहते हुए मणी दिखाने से इंकार कर दिया की ब्रम्‍हाजी की आज्ञानुसार मैं वह रत्‍न किसी को भी नहीं दिखा सकता हूँ । इस पर श्रीगणेश अत्‍यंत कुपित हुए और उनहोंने श्राप देते हुए कहा -' तुम्‍हारा व तुम्‍हारे समाज का चरमोत्‍कर्ष स्‍थान से पतन हो जायेगा ।' तब से श्रीगणेश जी का श्राप फलित होना प्रारंभ हो गया । श्राप के प्रभाव से पहले तो पद्मशाली अपने चरमोत्‍कर्ष में पहुँचे, उसके उपरांत तत्‍काल ही पतन होना आरंभ हो गया । पद्मशाली समाज के शापित होने के पश्‍चात् दक्षिण भारत में श्रीराम अग्रहायण गॉंव में परब्रम्‍ह मूर्ति नामक एक महापुरूष हुये । वे परम शिवभक्‍त व शिवपूजक थे । परब्रम्‍ह मूर्ति 'पद्मभवाचार्य' के नाम से प्रसिध्‍द थे । वे विजय नगर सम्राज्‍य के हंपी गॉंव में रहते थे । उन्‍होंने समाज के विकास के अनेको कार्य किये । उन्‍होंने अत्‍यंत श्रध्‍दाभाव से श्री गणेश की उपासना की। उनके तप से श्री गणेश जी अत्‍यंत प्रसन्‍न हुए । परब्रम्‍हमूर्ति के सम्‍मुख प्रकट होकर उन्‍हें वरदान मांगने को कहा । तब परब्रम्‍हमूर्ति जी ने पद्मशाली समाज के हित के लिये वरदान मांगते हुए कहाकि - ' भगवान आपके श्राप के प्रभाव से पद्मशाली समाज का पतन हो रहा है । अत: पद्मशाली समाज को आप श्रापमुक्‍त करें जिससे पद्मशाली समाज अपने पूर्व वैभव को प्राप्‍त कर सके और समाज की उन्‍नति हो सके, इस तरह का वरदान हमें प्रदान करें ।' तब श्री गणेश जी ने उन्‍हें आर्शीवाद देते हुए कहा कि -' तथास्‍तुवत्‍स ! कलि‍युग में पांच हजार वर्षों के उपरांत पद्मशाली समाज को पूर्व वैभव की प्राप्ति होगी और समाज की उन्‍नति होगी।' और गणेशजी अर्न्‍तध्‍यान हो गये । ई .सन् 1900 से पूर्व पद्मशाली समाज दीन-हीन, दुर्बल, धनहीन, ज्ञानहीन एवं धैर्यहीन था । सभी क्षेत्र में समाज पिछडा हुआ था । ई.सन् 1900 में कलियुग प्रारंभ होकर पॉंच हजार वर्ष पूर्ण हो चुके हैं । तब से धीरे-धीरे पद्मशाली समाज ने विकास करना प्रारंभ कर दिया है । पिछले सौ वर्षो में अपनी बुध्दिमता, कौशल, त्‍याग और परिश्रम से समाज कछुये सी धीमी गति से ही सही विकास की ओर उन्‍मुख हो रहा है । कुरीतियों व रू‍ढियों का त्‍याग किया जा रहा है । विविध उद्योग व व्‍यवसाय के क्षेत्र में प्रवेश किया जा रहा है । इस प्रकार से गणेश जी के वरदान से पद्मशाली समाज की उन्‍नति होने लगी है । पद्मशाली समाज को पहले श्राप देने वाले तथा बाद में श्रापमुक्ति का वरदान देने वाले दोनों ही गणेश जी हैं । समाज की प्रगति के लिये श्री गणेश जी ही आधार है , इस सत्‍य को पद्मशाली समाज के बंधु-बांधवों ने प्राचीन काल से ही जान लिया था और समाज को समृध्दि व ज्ञान का आर्शीवाद श्री गणेश से ही निरंतर प्राप्‍त होता रहा है, अतएव प्राचीनकाल से ही प्रत्‍येक वर्ष भद्रपाद शुध्‍द चतुर्थी को समारोहपूर्वक धूमधाम से श्री गणेश जी की मूर्ति अपने-अपने घरों में स्‍थापित करते आ रहे हैं । आज भी इस पवित्र और पूजनीय प्रथा का निरंतर निर्वाह किया जा रहा है । छत्‍तीसगढ़ पद्मशाली समाज द्वारा प्रकाशित सामाजिक पत्रिका ''पद्म जागृति'' से साभार ....